2D कम संसाधनों में उच्च FPS और बेहतर बैटरी दक्षता देता है, खासकर साधारण हार्डवेयर पर.
2D रेंडरिंग में शेडर जटिलता, डेप्थ/लाइटिंग पास और पोस्ट-प्रोसेसिंग बहुत कम होते हैं, इसलिए GPU और CPU दोनों पर भार हल्का रहता है. स्प्राइट-बैचिंग के ज़रिए सैकड़ों-हज़ारों स्प्राइट्स कुछ ही ड्रॉ-कॉल में रेंडर हो जाते हैं, जिससे 60/120 FPS हासिल करना एंट्री-लेवल फोन तक पर संभव हो जाता है. कम थर्मल स्ट्रेस का मतलब कम थ्रॉटलिंग और लंबी बैटरी लाइफ है. यही दक्षता वेब और एम्बेडेड प्लेटफ़ॉर्म पर भी 2D को भरोसेमंद बनाती है.
2D एसेट्स का मेमोरी/स्टोरेज फुटप्रिंट बहुत हल्का होता है, जिससे ऐप आकार और RAM खपत दोनों घटते हैं.
उदाहरण के लिए, 2048×2048 RGBA टेक्सचर लगभग 16 MB होता है; 3D पाइपलाइन में अक्सर इसी मैटेरियल के लिए अल्बेडो+नॉर्मल+मेटैलिक/रफनेस+AO जैसी 3–4 मैप्स चाहिए होती हैं, जो 48–64 MB तक पहुँच जाती हैं. 2D में वही कंटेंट एक सिंगल एटलस में समा सकता है, जिससे बैंडविड्थ और कैश-प्रेशर दोनों घटते हैं. परिणामस्वरूप इंस्टॉल साइज छोटा रहता है और रन-टाइम मेमोरी बजट में अधिक कंटेंट फिट हो जाता है. कई सफल 2D मोबाइल गेम्स 50 MB से कम पैकेज में आराम से वितरित किए जाते हैं.
2D की रेंडर-पाइपलाइन सरल और पूर्वानुमेय है, इसलिए डिवाइस-फ्रैग्मेंटेशन में भी स्थिरता अधिक मिलती है.
ऑर्थोग्राफ़िक रेंडरिंग में ज़ेड-फाइटिंग, शैडो-कैस्केड, PBR ट्यूनिंग और भारी पोस्ट-इफ़ेक्ट्स जैसे जोखिम कम होते हैं. कम फीचर-सरफेस का मतलब ड्राइवर-स्पेसिफिक बग्स भी कम और डीबगिंग सीधी. यही कारण है कि 2D ऐप्स OpenGL ES 2.0/WebGL 1 जैसे पुराने ग्राफ़िक्स स्टैक्स पर भी सुचारु चलते हैं. QA और सपोर्ट लागत घटती है, परफॉर्मेंस बजट अनुमानित रहता है.
2D तेज़ इटरेशन और कम प्रोडक्शन-लागत देता है, जो छोटी टीमों के लिए गेम-चेंजर है.
लाइट-बेकिंग, हाई-पॉली रिगिंग या जटिल मैटेरियल-कंपाइल्स की जरूरत नहीं होने से इंपोर्ट और बिल्ड समय घटता है और हॉट-रिलोडिंग आसान होती है. लेवल-डिज़ाइन और एनीमेशन का फीडबैक-लूप सेकंड्स में मिलता है, जिससे प्रोटोटाइपिंग की गति कई गुना बढ़ जाती है. 2D फिज़िक्स और कैमरा व्यवहार अधिक डिटरमिनिस्टिक होते हैं, इसलिए नेटकोड और रिग्रेशन-टेस्टिंग सरल रहती है. यही चुस्ती समय-से-बाज़ार को कम करती है और जोखिम घटाती है.