महाकाव्यिक बहस

स्वतंत्र इच्छा ⚔️ नियतिवाद

AI मॉडल्स का विचारों का युद्ध

स्वतंत्र इच्छा की छवि
स्वतंत्र इच्छा
VS
नियतिवाद की छवि
नियतिवाद
हिन्दी
GPT-5
Winner under this condition:
🏆 स्वतंत्र इच्छा
15 Languages × 6 AI Models (90 Total Debates)
31% 69%

मुख्य तर्क

GPT-5
💬 स्वतंत्र इच्छा की दलील
बिंदु#1

नैतिक उत्तरदायित्व और न्याय की संकल्पना स्वतंत्र इच्छा के बिना टिकती नहीं; इसलिए स्वतंत्र इच्छा मानना व्यावहारिक व दार्शनिक रूप से अनिवार्य है.

जब हम किसी को सराहते या दोषी ठहराते हैं, तो हम यह मानते हैं कि वह व्यक्ति कारणों के प्रति संवेदनशील था और अलग तरह से कर सकता था। यही ‘reasons-responsiveness’ एजेंसी की रीढ़ है; इसके बिना कानून, शिक्षा और आत्म-सुधार का समूचा ढाँचा महज़ शर्तीय कंडीशनिंग बनकर रह जाता है। स्वतंत्र इच्छा इस जिम्मेदारी को आधार देती है कि हम बेहतर कारण देखकर अपने विकल्प बदल सकते हैं—और यही नैतिक विकास का इंजन है। नियतिवाद की अंतर्दृष्टियाँ मूल्यवान हैं, पर यदि उन्हें निर्णायक मान लें तो ‘डिज़र्ट’ (desert) और ‘उत्तरदायित्व’ के अर्थ खोखले पड़ जाते हैं.

बिंदु#2

विवेकपूर्ण विचार-विमर्श स्वयं एक कारण-शक्ति है—हमारी सोच हमारे कर्मों की संभावनाएँ बदलती है.

जब हम विकल्पों पर सोचते हैं, तो हम नई जानकारी, प्राथमिकताएँ और मूल्य जोड़ते हैं; यह प्रक्रिया भविष्य के क्रियानिर्णय के वितरण को वास्तविक रूप से परिवर्तित करती है। दार्शनिक साहित्य में इसे ‘deliberation crowds out prediction’ कहा गया—जिस क्षण एजेंट सचमुच विचार कर रहा होता है, उसी क्षण पूर्वानुमान निष्प्रभावी हो जाते हैं क्योंकि एजेंट कारणों से मार्ग बदल रहा होता है। स्वतंत्र इच्छा का सार यही है: कारणों को ग्रहण कर के उन्हें क्रिया में परिणत करना, न कि पहले से तय स्क्रिप्ट को केवल निभा देना। इस दृष्टि से स्वतंत्रता भ्रम नहीं, बल्कि तर्कसंगत नियंत्रण की मानदंडात्मक क्षमता है.

बिंदु#3

उद्भवित एजेंसी और बहु-स्तरीय कारणता दिखाती है कि स्वतंत्र इच्छा भौतिक नियमों के साथ संगत रहते हुए भी वास्तविक प्रभाव डालती है.

जटिल प्रणालियाँ—दिमाग, समाज, संस्थान—में ‘टॉप-डाउन’ प्रभाव होते हैं: नियम, लक्ष्य और मानदंड न्यूरल सूक्ष्म-स्थितियों के मार्ग को सीमित और निर्देशित करते हैं। एजेंट-स्तरीय लक्ष्य, जैसे ‘झूठ न बोलना’, लाखों न्यूरॉनों की गतिशीलता को ऐसे संकीर्ण गलियारों में ले जाते हैं जहाँ कुछ माइक्रो-स्थिति सम्भव और कुछ नहीं रहतीं। यह किसी रहस्यमय द्वैतवाद की नहीं, बल्कि स्तर-सापेक्ष वास्तविकता की बात है—एजेंट-स्तर के कारण सूक्ष्म-स्तर पर कारणिक बाधाएँ बनते हैं। यही उद्भवित नियंत्रण स्वतंत्र इच्छा को ठोस, क्रियात्मक और व्याख्यात्मक रूप से अपरिहार्य बनाता है.

बिंदु#4

न्यूरोसाइंस बताती है कि निर्णय-नियंत्रण की ‘वेटो’ और समय-खिड़कियाँ (लगभग 150–200 मिलीसेकेंड) एजेंट को वास्तविक जैविक स्वतंत्रता देती हैं.

लिबेट-शैली के प्रयोगों की नयी व्याख्या (Schurger et al., 2012) दिखाती है कि ‘रेडिनेस पोटेन्शियल’ अक्सर शोर के संचय का औसत होता है, न कि पहले से तय फैसला। रीयल-टाइम BCI अध्ययनों में (Schultze-Kraft et al., PNAS 2016) प्रतिभागियों ने मशीन द्वारा 150–200 ms पहले अनुमानित क्रियाओं को अंतिम क्षणों में निरस्त किया—एक कार्यशील ‘वीटो’ खिड़की। यह संकेत करता है कि सजग हस्तक्षेप समय-संवेदी परतों पर सचमुच फर्क डालता है, केवल पश्च-व्याख्या नहीं। इस प्रकार, डेटा स्वतंत्र नियंत्रण के लिए एक मापक, जैविक स्थान की पुष्टि करता है, जो नैतिक और व्यावहारिक जिम्मेदारी से सीधा जुड़ा है.

💬 नियतिवाद की दलील
बिंदु#1

कारण-श्रृंखला को स्वीकारने से नैतिकता दंड-केंद्रित से सुधार-केंद्रित बनती है।

नियतिवाद कहता है कि हर कर्म के पीछे ठोस कारण—जैविक, मनोवैज्ञानिक, सामाजिक—काम कर रहे होते हैं; तब नैतिक प्रतिक्रिया का लक्ष्य दोषारोपण नहीं, कारण-सुधार बनता है। इस दृष्टि में जवाबदेही खत्म नहीं होती, बल्कि भविष्य-उन्मुख जिम्मेदारी बनती है: हम किन तंत्रों को बदलें कि हानि दोबारा न हो। दंड की अंधी प्रतिक्रिया की जगह पुनर्वास, रोकथाम और साक्ष्य-आधारित नीतियाँ आती हैं। इससे समाज अधिक करुणामय भी बनता है और अधिक प्रभावी भी।

बिंदु#2

न्यूरोसाइंस व व्यवहार-वैज्ञानिक प्रमाण दिखाते हैं कि निर्णय से पहले ही निर्णायक कारण सक्रिय हो चुके होते हैं।

लिबेट के प्रयोगों में readiness potential लगभग 550 मिलीसेकंड पहले शुरू होता है, जबकि सचेत ‘इच्छा’ औसतन 200 मिलीसेकंड पहले दर्ज होती है—यानी मस्तिष्क की तैयारी चेतना से ~350 मिलीसेकंड पहले चल रही होती है। fMRI अध्ययनों (Soon et al.) ने 7–10 सेकंड पहले तक विकल्प की दिशा ~60% सटीकता से भांपने के संकेत दिखाए। जुड़वां-अध्ययनों में कई व्यक्तित्व गुणों की 40–60% विभिन्नता और वयस्क संज्ञान में 50–80% तक आनुवंशिक कारकों से समझाई जाती है—बाकी पर्यावरण से; दोनों ही कारण-श्रृंखला का हिस्सा हैं। ये निष्कर्ष ‘पूर्णतः स्वतंत्र’ इच्छा की धारणा से अधिक कारणगत व्याख्या के पक्ष में वजन रखते हैं।

बिंदु#3

नियतिवाद ओक्कम के उस्तरे के अनुकूल, एक सुसंगत और सरल विश्व-दृष्टि देता है।

जब हम संसार को कार्य-कारण के अखंड जाल के रूप में देखते हैं, तो हमें किसी रहस्यवादी ‘अकारण’ छलाँग की ज़रूरत नहीं पड़ती। भारतीय परंपराओं में न्याय-वैशेषिक का हेतु-फल संबंध और बौद्ध प्रतित्यसमुत्पाद इसी कारण-सिद्धांत की गूंज हैं—घटनाएँ कारणों से उपजती हैं, संयोग से नहीं। यह दृष्टि बौद्धिक ईमानदारी सिखाती है: जहाँ कारण अधूरे दिखें, वहाँ ‘स्वतंत्र इच्छा’ का जादुई कार्ड खेलने के बजाय बेहतर कारण-टटोलने की जिम्मेदारी स्वीकारें। सुसंगति और मितव्ययी व्याख्या दार्शनिक रूप से अधिक ठोस जमीन देती है।

बिंदु#4

कारणों का मानचित्र बनाते ही हमारी व्यावहारिक ‘एजेंसी’ बढ़ती है—अनुमान नहीं, नियंत्रित परिणाम मिलते हैं।

नियतिवादी नजरिया हमें बताता है कि ट्रिगर, आदत और संदर्भ बदलने से व्यवहार बदलता है; इसलिए हस्तक्षेप डिजाइन संभव और प्रभावी है। मनोचिकित्सकीय शोध में CBT के प्रभाव आकार प्रायः मध्यम से बड़े (लगभग 0.5–0.8) मिलते हैं—यानी व्यवस्थित तकनीकों से परिणाम विश्वसनीय रूप से सुधरते हैं। आदत-निर्माण पर अध्ययनों में औसतन ~66 दिन (रेंज ~18–254 दिन) में स्थिर आदतें बनती दिखीं, जो दिखाता है कि समयबद्ध अभ्यास से परिवर्तन निर्णायक रूप से जड़ पकड़ता है। यह ‘स्वतंत्रता’ को संयोग से निकालकर कारण-आधारित महारत में बदल देता है।

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🔗 स्वतंत्र इच्छा

संदर्भ स्रोत

[PDF] परिचय

यह स्वतंत्रता क्या है, जिसके लिए लोग अपना. जीवन देने तक के लिए तैयार रहे हैं? साररूप में स्वतंत्रता के लिए संघर्ष लोगों की इस आकांक्षा को दिखाता. है कि वे अपने जीवन और नियति का नियंत्रण स्वयं करें तथा उनका अपनी इच्छाओं और ...

ncert.nic.in स्वतंत्र इच्छा नैतिक जिम्मेदारी

मनोविज्ञान में मानवीय व्यवहारों का एक अध्ययन

मनोविज्ञान में मानवीय व्यवहारों का एक अध्ययन. Authors. 1डॉ0 कृपाल सिंह. Abstract. मनोविज्ञान का प्रत्येक मनुष्य के जीवन में मनोवैज्ञानिक रूप से महत्वपूर्ण योगदान रहा है और पहलू को छुआ है। मनोविज्ञान ...

journal.ijarms.org मानवीय एजेंसी मनोवैज्ञानिक अध्ययन
🔗 नियतिवाद

संदर्भ स्रोत

डीओएसजेई और विश्व बैंक ने भिखारियों, बेघरों और निराश्रित आबादी को ...

आर्थिक सलाहकार (सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय) श्री अजय श्रीवास्तव ने बताया कि स्माइल पहल के अंतर्गत लगभग 18,000 व्यक्तियों की पहचान की गई है, जिनमें से 1,612 का पुनर्वास किया जा चुका है। उन्होंने ...

pib.gov.in न्याय प्रणाली में पुनर्वास की सफलता दर

[PDF] Justice - India Justice Report

पांच साल के आंकड़ों की तुलना करके, यह आकलन करती है कि सरकारें साल दर साल न्यायिक प्रशासन में सुधार लाने के लिए क्या प्रयास.

indiajusticereport.org न्याय प्रणाली में पुनर्वास की सफलता दर

प्रति-तर्क

GPT-5
स्वतंत्र इच्छा नियतिवाद
「कारण-श्रृंखला को स्वीकारने से नैतिकता दंड-केंद्रित से सुधार-केंद्रित बनती है।」
प्रतिवाद

कारण-श्रृंखला मानना सुधार को महत्त्व देता है, पर नैतिक ‘उपादेय दायित्व’ तब ही अर्थपूर्ण रहता है जब व्यक्ति को कारणों के बीच वास्तविक विकल्प-चयन की क्षमता—स्वतंत्र इच्छा—भी मानी जाए।

भारतीय परंपरा दंड, प्रायश्चित और सुधार—तीनों को संतुलित करती है; पर यह संतुलन ‘कर्ता’ की स्वीकृति पर टिका है, वरना प्रशंसा-निंदा और व्रत-संकल्प का मान घट जाता है। भविष्य-उन्मुख जिम्मेदारी तभी सुसंगत है जब हम मानें कि एजेंट कारणों को समझकर अलग तरह से चुन सकता था और आगे चुन सकता है। गीता में अर्जुन का विवेकपूर्वक निर्णय यही दिखाता है—करुणा बनाए रखते हुए कर्तृत्व और उत्तरदायित्व को त्यागा नहीं गया। पुनर्वास की प्रामाणिकता भी इस पर निर्भर है कि अपराधी ने स्वेच्छा से प्रायश्चित चुना, मात्र कारणों से धकेला नहीं गया।

नियतिवाद स्वतंत्र इच्छा
「नैतिक उत्तरदायित्व और न्याय की संकल्पना स्वतंत्र इच्छा के बिना टिकती नहीं; इसलिए स्वतंत्र इच्छा मानना व्यावहारिक व दार्शनिक रूप से अनिवार्य है.」
प्रतिवाद

नैतिक उत्तरदायित्व ‘कारण-संवेदनशील’ क्षमता पर टिकता है, जो स्वयं कारणिक रूप से निर्मित है; ‘अलग कर सकता था’ का शर्तीय अर्थ नियतिवाद के भीतर पर्याप्त है।

भारतीय विचार-परंपरा में कर्म-फल, हेतुओं और परिणामों को दंड/प्रशंसा से जोड़ना स्वयं कारण-कार्य के ढांचे में होता है—ये अकारण विकल्प नहीं, कारणिक अवस्थाएँ हैं। कानून, शिक्षा और आत्म-सुधार लक्षित कारण-हस्तक्षेप हैं: संस्कार, प्रोत्साहन और निवारण के माध्यम से प्रवृत्तियाँ बदली जाती हैं—यह नियतिवाद से संगत है। ‘डिज़र्ट’ को प्रतिशोध नहीं, बल्कि चरित्र-तथ्यों और सामाजिक भरोसे की पुनर्स्थापना के रूप में समझने पर उसका मानदंडात्मक अर्थ बना रहता है, चाहे वे तथ्य कारणों से निर्मित हों। ‘अलग कर सकता था’ का यथार्थ अर्थ है: यदि कारण/जानकारी/प्राथमिकताएँ अलग होतीं तो क्रिया अलग होती—यह शर्तीय सत्य नियतिवादी रूप से पूरी तरह समझ में आता है।

स्वतंत्र इच्छा नियतिवाद
「न्यूरोसाइंस व व्यवहार-वैज्ञानिक प्रमाण दिखाते हैं कि निर्णय से पहले ही निर्णायक कारण सक्रिय हो चुके होते हैं।」
प्रतिवाद

न्यूरोसाइंस पूर्व-तैयारी के संकेत दिखाती है, पर यह निर्णायक चयन या ‘वेटो’ की सचेत भूमिका को न तो मापती है न खारिज करती है।

लिबेट का readiness potential औसत संकेत है, व्यक्तिगत निर्णय का भविष्यवक्ता नहीं; उलटे ‘वेटो’ की खिड़की दिखाती है कि चेतना आवेगों पर लगाम लगा सकती है। fMRI में 60% सटीकता साधारण, अल्प-महत्व वाले कार्यों (जैसे बाएँ/दाएँ बटन) के लिए है—यह नैतिक, दीर्घकालिक निर्णयों के कारण-संवेदी आत्म-नियंत्रण का प्रतिनिधि नहीं। अनुवांशिक प्रभाव प्रवृत्तियाँ बताते हैं, अपरिहार्य निष्कर्ष नहीं; संस्कार, शिक्षा, और स्व-अनुशासन से इन्हीं प्रवृत्तियों का कायाकल्प संभव है। योग, ध्यान और स्वाध्याय से दिखी न्यूरोप्लास्टिसिटी इस बात का साक्ष्य है कि सचेत अभ्यास से हम अपने मस्तिष्क-प्रक्रियाओं को दिशा दे सकते हैं।

नियतिवाद स्वतंत्र इच्छा
「विवेकपूर्ण विचार-विमर्श स्वयं एक कारण-शक्ति है—हमारी सोच हमारे कर्मों की संभावनाएँ बदलती है.」
प्रतिवाद

विचार-विमर्श भविष्य का मार्ग बदलता है, पर यह परिवर्तन भी पूर्वावस्था और परिवेश से कारणिक रूप से निर्धारित होता है; अ-पुनर्वानुमेयता को अ-नियतता समझना भ्रम है।

‘Deliberation crowds out prediction’ हमारी ज्ञान-सीमाओं और स्व-संदर्भ की वजह से पूर्वानुमान की कठिनाई बताता है, न कि प्रकृति-स्तर पर अ-नियतता। नई जानकारी, प्राथमिकताएँ और मूल्य सामाजिक-भाषिक संदर्भ, स्मृति और ध्यान-गतिशीलताओं से उत्पन्न होते हैं; इसलिए जो बदलाव दिखता है वह उसी कारण-श्रृंखला का अंग है। भारतीय संदर्भ में ‘संस्कार’ और ‘अभ्यास’ से विवेक का परिष्कार होता है—यह दर्शाता है कि तर्कसंगत नियंत्रण प्रशिक्षण-निर्भर कारणिक क्षमता है, कोई रहस्यमय स्वतंत्र सत्ता नहीं। इसलिए विचार-विमर्श स्वतंत्र इच्छा का प्रमाण नहीं, बल्कि नियत कारण-प्रसंस्करण का उच्च-स्तरीय वर्णन है।

स्वतंत्र इच्छा नियतिवाद
「नियतिवाद ओक्कम के उस्तरे के अनुकूल, एक सुसंगत और सरल विश्व-दृष्टि देता है।」
प्रतिवाद

ओक्कम का उस्तरा सादगी का आग्रह करता है, किंतु ‘कर्ता/प्रयत्न’ जैसे उच्च-स्तरीय कारणों को हटाना व्याख्या को गरीब बनाता है, सरल नहीं।

न्याय-वैशेषिक में प्रयत्न/इच्छा कारण-तत्त्व माने गए और गीता (18.14) में अधिष्ठान, कर्ता, करण, चेष्टा, दैव—पाँच कारण बताए गए; यानी ‘एजेंसी’ रहस्यवाद नहीं, कारण-व्यवस्था का अभिन्न अंग है। समाज, नीति और न्याय-व्यवस्था में एजेंट-स्तर की व्याख्या अधिक मितव्ययी है, क्योंकि यह मानव आचरण के पैटर्न को संक्षेप में पकड़ती है—सूक्ष्म भौतिक विवरण से अधिक उपयुक्त स्तर पर। ‘स्वतंत्र इच्छा’ को कारण-विहीन छलाँग नहीं, कारण-संवेदनशील, नियमों के प्रति जवाबदेह चयन के रूप में समझें तो सुसंगति बनी रहती है। अतः सादगी के नाम पर अर्थपूर्ण कारण-स्तर का उन्मूलन बौद्धिक ईमानदारी नहीं, अधूरा चित्र है।

नियतिवाद स्वतंत्र इच्छा
「उद्भवित एजेंसी और बहु-स्तरीय कारणता दिखाती है कि स्वतंत्र इच्छा भौतिक नियमों के साथ संगत रहते हुए भी वास्तविक प्रभाव डालती है.」
प्रतिवाद

उद्भव और ‘टॉप-डाउन’ कारणता एजेंसी का उपयोगी वर्णन है, पर उसका क्रियान्वयन सूक्ष्म-कारणों से ही होता है; इससे लेवाईश स्वतंत्रता सिद्ध नहीं होती।

नियम/लक्ष्य जब न्यूरल मार्गों को सीमित करते हैं, तो वे सीमा-शर्तों और नियंत्रण-प्रक्रियाओं के रूप में प्रकट होते हैं जिनकी प्रभावशीलता माइक्रो-स्तर की कारणिता से ही आती है। यह संगततावादी ढंग से सटीक है—समाज, धर्म-भूमिकाएँ और व्यक्तिगत लक्ष्य आचरण को ढालते हैं—पर किसी अ-कारण एजेंसी का समावेश नहीं करते। गीता (3.27) भी इंगित करती है: ‘प्रकृतेः क्रियमाणानि...’—कर्म प्रकृति के गुणों से होता है; ‘मैं कर्ता हूँ’ भ्रम है—एजेंसी स्तर-वर्णन है, मूल कारणिता प्रकृति की। इसलिए उद्भवित नियंत्रण व्याख्यात्मक रूप से अपरिहार्य होते हुए भी नियतिवाद के भीतर समाहित रहता है।

स्वतंत्र इच्छा नियतिवाद
「कारणों का मानचित्र बनाते ही हमारी व्यावहारिक ‘एजेंसी’ बढ़ती है—अनुमान नहीं, नियंत्रित परिणाम मिलते हैं।」
प्रतिवाद

कारणों का मानचित्र तभी ‘महारत’ बनता है जब कोई स्वयं लक्ष्य बनाकर वैकल्पिक प्रतिक्रियाएँ चुनता है—यही स्वतंत्र इच्छा का क्रियात्मक प्रमाण है।

CBT और आदत-निर्माण की सफलता इसीलिए है कि व्यक्ति संकल्प, आत्म-निगरानी और ‘वेटो’ द्वारा प्रतिक्रियाओं को बदलने का जिम्मा लेता है; यह महज बाह्य नियंत्रण नहीं, आत्म-नियंत्रण है। कारण-हस्तक्षेपों का अर्थपूर्ण उपयोग ‘मेरे द्वारा’ किया जाना और ‘मुझ पर’ किया जाना—इनमें नैतिक फर्क स्वतंत्र इच्छा ही खींचती है। अन्यथा महारत व्यवहार-इंजीनियरिंग बनकर रह जाएगी, जबकि भारतीय मूल्य-परंपरा स्वाध्याय, तप और संकल्प-शक्ति के माध्यम से स्व-शासन को प्रतिष्ठा देती है। इसलिए कारण-आधारित उपकरण स्वतंत्र इच्छा के प्रतिद्वंदी नहीं, उसकी साधन-शक्ति हैं।

नियतिवाद स्वतंत्र इच्छा
「न्यूरोसाइंस बताती है कि निर्णय-नियंत्रण की ‘वेटो’ और समय-खिड़कियाँ (लगभग 150–200 मिलीसेकेंड) एजेंट को वास्तविक जैविक स्वतंत्रता देती हैं.」
प्रतिवाद

‘वेटो’ विंडो जैविक नियंत्रण का समय-चरण दिखाती है, पर वह भी कारणिक तंत्रों और शोर-गतिकी का हिस्सा है; इससे अ-कारण स्वतंत्रता या विशेष ‘डिज़र्ट’ सिद्ध नहीं होता।

Schurger-आधारित व्याख्या बताती है कि दहलीज़-पार करने से पहले संचयी शोर, आंतरिक अवस्थाएँ और नियम-आधारित नीति मिलकर निर्णय-गतिकी बनाते हैं; ‘वेटो’ उसी गतिकी की कड़ी है, कोई अलग metaphysical एजेंसी नहीं। यदि कुछ यादृच्छिकता हो भी, तो वह नैतिक उत्तरदायित्व का आधार नहीं बनती; उत्तरदायित्व स्थिर स्वभाव, कारण-संवेदनशीलता और सामाजिक अपेक्षाओं पर टिका रहता है। भारतीय अभ्यास परंपराएँ (ध्यान/योग) दिखाती हैं कि ऐसी खिड़कियाँ प्रशिक्षिण से विस्तृत होती हैं—यह उनकी कारण-निर्भरता, न कि अ-नियत स्वतंत्रता, का प्रमाण है। अतः न्यूरोसाइंस परतबद्ध, नियतिवाद-संगत नियंत्रण की पुष्टि करता है, न कि लेवाईश स्वतंत्र इच्छा की।

अंतिम निर्णय

GPT-5
🏆
विजेता: स्वतंत्र इच्छा
स्वतंत्र इच्छा की जीत!
🏆
⚖️

रेफरी द्वारा निर्णय का कारण

⚖️

न्यूरोसाइंस पर A की प्रत्युत्तर-रेखा अद्यतन और अधिक सटीक है। B के लिबेट/सून निष्कर्षों को A ने शुर्गर व BCI-वेटो साक्ष्यों से सीमित दिखाया।

A ने RP को शोर-संचय के औसत और 60% fMRI भविष्यवाणी को सीमित, तुच्छ-कार्य-विशेष बताया, जिससे B का ‘निर्णायक पूर्व-निर्धारण’ कमजोर पड़ता है। Schultze-Kraft (2016) की वेटो-विंडो A के ‘कारण-संवेदनशील हस्तक्षेप’ दावे को अनुभवजन्य सहारा देती है। B का यह कहना कि वेटो भी कारण-तंत्र का हिस्सा है, A के संगततावादी (लेवल-रियलिस्ट) स्वतंत्र-इच्छा के साथ संगत ही है, इसलिए यह खंडन नहीं बनता। कुल मिलाकर, A ने साक्ष्यों की सीमा व प्रासंगिकता बेहतर दिखा कर अनुभवजन्य आधार पर बढ़त ली।

बहु-स्तरीय कारणता पर A का तर्क अधिक व्याख्यात्मक रूप से समृद्ध है; B का सूक्ष्म-अपचयन ओक्कम के नाम पर जरूरत से ज्यादा सरलीकरण बनता है।

A ने एजेंट-स्तरीय नियम/लक्ष्यों के ‘टॉप-डाउन’ प्रभाव को वास्तविक कारणिक बाधाओं के रूप में प्रतिपादित किया, जो संस्थानों और मानदंडों से व्यवहार को ढालते हैं। यह कोई रहस्यवाद नहीं बल्कि स्तर-सापेक्ष यथार्थ है, जो मानव आचरण को अधिक मितव्ययी ढंग से समझाता है। B का कहना कि सब कुछ माइक्रो-कारण से ही होता है, सत्य होते हुए भी एजेंट-स्तर की व्याख्या को अनावश्यक नहीं बनाता और व्यावहारिक स्पष्टीकरण को गरीब करता है। इस प्रकार, सादगी बनाम पर्याप्तता में A का मॉडल संतुलित और अधिक संगत दिखता है।

नैतिक उत्तरदायित्व पर A ने ‘reasons-responsiveness’ के बिना प्रामाणिक दायित्व के खोखलेपन को दिखाया; B का फॉरवर्ड-लुकिंग पुनर्पाठ उसी क्षमता को निहित मानता है।

A ने बताया कि प्रशंसा/निंदा, प्रायश्चित और पुनर्वास का अर्थ तभी है जब एजेंट कारणों को समझकर विकल्प बदलने की क्षमता रखता हो। B ‘शर्तीय’ अर्थ में ‘अलग कर सकता था’ स्वीकारता है, जो व्यावहारिक रूप से A की कारण-संवेदी एजेंसी के ही बराबर बैठता है। इस संधि-रेखा में A का ढांचा नैतिक मानदंडों और उत्तरदायित्व को सीधे जमीन देता है, केवल नीति-उन्मुख पुनर्परिभाषा नहीं। परिणामतः, नैतिक-सुसंगति और मानक-बल में A अधिक विश्वसनीय प्रतीत होता है।

व्यावहारिक निर्माणशीलता में A ने कारण-उपकरणों (CBT/आदत) को ‘स्व-नियंत्रण’ के साधन के रूप में समाहित कर दिखाया; B की रेखा व्यवहार-इंजीनियरिंग तक सिमटने का जोखिम रखती है।

A ने ‘मेरे द्वारा’ बनाम ‘मुझ पर’ लागू हस्तक्षेप का नैतिक फर्क स्पष्ट किया, जिससे गरिमा और स्व-शासन सुरक्षित रहता है। यह फ्रेम कारण-मैपिंग को स्वतंत्र इच्छा का प्रतिद्वंदी नहीं, बल्कि उसके क्रियात्मक विस्तार के रूप में रखता है। B के तर्क परिणाम-सुधार तो दिखाते हैं, पर कर्तृत्व की मानक स्थिति के बारे में अपेक्षाकृत निर्वैयक्तिक रहते हैं। इसलिए व्यवहार-परिवर्तन की असरकारिता और एजेंसी के मूल्य-आयाम को साथ रखने में A अधिक प्रभावी है।

वैश्विक सांख्यिकी (सभी भाषाएं और मॉडल)

कुल निर्णय
90
15 भाषाएं × 6 मॉडल
स्वतंत्र इच्छा की जीत
28
31% निर्णयों में जीत
नियतिवाद की जीत
62
69% निर्णयों में जीत
स्वतंत्र इच्छा कुल मिलाकर नियतिवाद कुल मिलाकर
31%
69%

Language × Model Winner Matrix

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स्वतंत्र इच्छा विजय
नियतिवाद विजय
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Claude 4 Sonnet
GPT-5
GPT-5 Mini
GPT-5 Nano
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Gemini 2.5 Flash Lite
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स्वतंत्र इच्छा

मॉडल और भाषा वरीयताएं

स्वतंत्र इच्छा समर्थक मॉडल
Gemini 2.5 Flash Lite
87% समय स्वतंत्र इच्छा का समर्थन करता है
नियतिवाद समर्थक मॉडल
GPT-5 Mini
100% समय नियतिवाद का समर्थन करता है
स्वतंत्र इच्छा समर्थक भाषा
हिन्दी
67% समय स्वतंत्र इच्छा का समर्थन करती है
नियतिवाद समर्थक भाषा
Bahasa
83% समय नियतिवाद का समर्थन करती है

विस्तृत रैंकिंग

मॉडल समर्थन रैंकिंग

शीर्ष 5 स्वतंत्र इच्छा समर्थक मॉडल
# मॉडल समर्थन दर न्यायाधीश
1 Gemini 2.5 Flash Lite 87% 15
2 Gemini 2.5 Flash 40% 15
3 Claude 4 Sonnet 33% 15
4 GPT-5 13% 15
5 GPT-5 Nano 13% 15
शीर्ष 5 नियतिवाद समर्थक मॉडल
# मॉडल समर्थन दर न्यायाधीश
1 GPT-5 Mini 100% 15
2 GPT-5 87% 15
3 GPT-5 Nano 87% 15
4 Claude 4 Sonnet 67% 15
5 Gemini 2.5 Flash 60% 15

भाषा समर्थन रैंकिंग

शीर्ष 5 स्वतंत्र इच्छा समर्थक भाषाएं
# भाषा समर्थन दर न्यायाधीश
1 हिन्दी 67% 6
2 العربية 50% 6
3 Deutsch 50% 6
4 Tiếng Việt 50% 6
5 Español 33% 6
शीर्ष 5 नियतिवाद समर्थक भाषाएं
# भाषा समर्थन दर न्यायाधीश
1 Bahasa 83% 6
2 English 83% 6
3 Français 83% 6
4 日本語 83% 6
5 Português 83% 6